Thursday 6 December 2012

darbhanga me aayojit hua computer awereness program

दी टेलीग्राफ
Mobile laboratory drives in, science turns fun practically
- Around 1600 students of Jayanand High School to benefit from programme under Sarva Shiksha Abhiyan
Students of Jayanand High School, Bahera,दरभंगा 
  had a practical experience of natural science at the auditorium of the institution.
A mobile laboratory, well equipped with modern instruments required to conduct all experiments for the Plus Two level, visited the school under Benipur block in the district.
Sonam Kumari, a Class VIII student of the school, told The Telegraph: “The instructors made us aware of a number of facts through experiments. They demonstrated that air occupies space. They also showed, with the help of a balloon, that it exerts pressure. The experiments were novel but easy to understand. The principle behind it was visualisation through instruments.”
The two instructors, Kishore Kumar Mathur and Kamal Kumar, conducted the experiments for students and instructed them on the basic principles of science.
Both Kishore and Kamal have been trained for two months at Agastya International Foundation at Kappam in Andhra Pradesh. Viksit Bharat Foundation, a non-government organisation started by former President APJ Abul Kalam and his friend Manas Bihari Verma, overviewed their training.
Kishore said: “We got training for two weeks at the Agastya International Foundation at Kappam in Andhra Pradesh. Since July 5, we have conducted demonstration in 15 schools in Bihar. We have received good response form the schoolchildren. We will extend the programme to the other districts of the state, after we finish visiting the schools in Darbhanga.”
The mobile laboratory has been constructed through the joint efforts of both the organisations. They will visit government and private schools all over Bihar and impart knowledge about science to schoolchildren.
Verma told The Telegraph: “A team of Agastya International Foundation had visited Darbhanga last year and demonstrated experiments in 14 high schools and 28 primary schools in three months. After that we sent two teachers for training to Kappam. They have finished their training and are conducting practical demonstration of experiments in Darbhanga. They will go to every school in the state and impart training to the students.”
Around 1,600 pupils of Jayanand High School would benefit from the four-day-long programme under the Sarva Shiksha Abhiyan.
The principal in-charge of the school, Bimal Kant Jha, said: “We have around 1,600 students. We have divided them in four groups so that the experiments could be demonstrated easily. One group has only girl students. They got training today. Three other groups, comprising boys, would be provided training on the subsequent days.”
Agastya International Foundation is a Bangalore-based education trust that seeks to transform and stimulate the thinking of rural children and teachers. Agastya does this by bringing hands-on science education to rural government schools in Karnataka and Andhra Pradesh.

Tuesday 13 November 2012

ashthapna diwas par bishes

upload mukesh kumar
13.11.2012
स्थापना दिवस पर विशेष : आस : नई आभा के दर्शन की
मुकेश कुमार, समस्तीपुर : 14 नवंबर 12 के बाद मैं एकतालिसवें वर्ष में प्रवेश कर जाऊंगा। स्वभावत: मैं पिछले चालीस वर्ष का आदि से इति का महज आकार ही नहीं, उसका एक रुप भी हूं। विश्वास करें, दशकों बाद इस रुप में लावण्य भी हूं। मेरी दमक से अन्य जिलों की आंखें भी चौंधिया गई है। पहली बार विपदा, विग्रह, विखंडन और अपहरण के कानफोड़ू स्वर मद्धिम पड़े हैं। विचार के साथ विमर्श, व्यवस्था और विकास के समझ भरे बोल सुनाई दे रहे हैं। हां, कुछ विडंबनाएं (राजेन्द्र कृषि विवि को केन्द्रीय विवि का दर्जा नहीं मिलना, एक भी तकनीक संस्थान का विकसित नहीं होना) और विकार (गर्भाशय कांड, तिहरा हत्याकांड) भी है। पर अच्छी बात यह है कि सपनीले विकल्पों के बूते आम जन यहां विडंबनाओं को दूर करने खुद उतर पड़े हैं। इस कारण दोष भी छिपे नहीं रह सके, और 'तंत्र' भी उनके निवारण में लग गया। यह नजरिए का फर्क है। इससे पहले मुझे कभी इसका दर्शन नहीं हो पाया था। इसका एक बड़ा कारण यह रहा कि मेरी धरती पर बेतिया का एक नौजवान समाहर्ता बन कर आया, जो जिले की आकांक्षाओं में भागीदार बन रहा है। इस नाते काम करने, जिले की सूरत बदलने को वह लालायित है। इस स्थापना दिवस के पूर्व का काल इसकी ताईद करता है। यह शायद हमारे लोकतंत्र का चमत्कार है, या फिर नेतृत्व का। सूबे के मुखिया भी किसी न किसी बहाने मेरी धरती पर चार बार आए। यहां की समस्याओं को जाना। 'सरकार' के खुद पर और अंतत: जिलावासियों पर उसके भरोसे का ही परिणाम हुआ कि कई अनसुलझी गुत्थियां खुद भी खुद सुलझ गई। मेरा विश्लेषण बताता है यह आत्मविश्वास जिले के हर क्षेत्र में उभर रहा है। अतीत के अवशेषों को हटाकर नई इमारत की बुनियाद रखी जा रही है। जिले के 41 वें वर्षगांठ में यहां विभिन्न तकनीकी कॉलेज खुले, समाहरणालय की तरह अन्य कार्यालय भी चकाचक हो। मुख्य सड़क के बीच में हरे-भरे वृक्ष हों, 40 वें वर्ष की तरह ही अपराध पर अंकुश रहे। चीनी मिल प्रांगण में शीघ्र फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुले, रुपौली में विद्युत थर्मल पावर खुले। वर्तमान जिस नई आभा से दीप्त है, वह और निखरे यही मेरी कामना है। स्वभावत: मैं 41 वें वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर आत्मविश्वास से लवरेज हूं। भरोसेमंद नजर आ रही हूं।
अपेक्षाएं जो पूरी होनी है :
- जिले में पालीटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज खुले
- पूसा कृषि विश्वविद्यालय को मिले केन्द्रीय विवि का दर्जा
- औद्योगिक इकाईयों का विकास हो
- जिले में बाहरी पूंजी निवेश हो
इनकी भी सुने
फोटो :12 एसएएम 14
रुपौली में होगा पहला
पूंजी निवेश : सांसद
उजियारपुर की सांसद अश्वमेघ देवी कहती हैं कि 42 वें स्थापना दिवस से पूर्व रुपौली में विद्युत क्षेत्र में पहला पूंजी निवेश होगा। इसके अलावा कई तकनीकी संस्थान भी खुलेंगे।
फोटो :12 एसएएम 15
अप्रैल माह से शुरु होगा जूट
मिल प्रोसेसिंग यूनिट : सिन्हा
उद्योगपति एनसीपी सिन्हा भी स्वीकार करते हैं कि सचमुच बदलाव आया है। उन्हें यह भी आशा है कि आने वाला समय और भी उज्ज्वलकारी होगा। वे कहते हैं कि जुट प्रोसेसिंग यूनिट, फूड प्रोसेसिंग यूनिट एवं एक माल 160 करोड़ की लागत से निर्मित होगा। उन्होंने संभावना जतायी कि 1 अप्रैल से इस दिशा में कार्य शुरु कर दिया जाएगा।

Sunday 11 November 2012

education news

12 /11/2012
मुकेश कुमार, समस्तीपुर : स्वास्थ्य और शिक्षा हमारी प्राथमिक आवश्यकताएं हैं। एक जहां हमारी शारीरिक स्थिति को प्रभावित करता है, वहीं दूसरा मानसिक दक्षता को। पर दुर्भाग्य यह कि इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि नहीं हो पाई। कहने को संस्थानों की संख्या तो बढ़ी पर मूलभूत आवश्यकता यथावत रह गई। वैसे भी, 40 वर्षो का अंतराल कुछ कम भी नहीं होता है। पर अपनी स्थापना के इतने वर्षों बाद भी मैं शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया हूं। यहां न तो मापदंडों के अनुरुप स्कूलों की स्थापना हुई और न मानकों पर कॉलेजों का निर्माण हो पाया। सरकारी आंकड़े भी मेरी इस धारणा को पुष्ट करने के लिए काफी हैं। मेरी धरती पर प्राथमिक व मध्य विद्यालयों की कुल संख्या 2503 है। 6-13 वर्ष के बच्चे की संख्या के अनुपात में अभी भी स्कूलों की स्थापना नहीं हो पायी। आज भी ड्रॉप आउट का दर काफी है। मेरी आत्मा केवल इसलिए दुखी है कि अभी भी 42,685 छात्र स्कूल से बाहर हैं। हायर एजुकेशन की स्थिति भी यहां कम उपेक्षित नहीं है। एक भी कॉलेज यूजीसी के मापदंडों पर खड़ा नहीं उतर पा रहा है। छात्र शिक्षक के अनुपात में भी भारी कमी है। कहीं-कहीं तो एक ही शिक्षक पूरा विभाग संभालते नजर आ रहे हैं। ऐसे में कैसे हमारे नौनिहालों को बेहतर शिक्षा मिल पाएगी। सूबे में जहां 815 कॉलेज हैं, वहीं जिले में 14 कॉलेज है। पर इनमें से कोई भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मापदंड पर खड़ा नहीं उतर पा रहा है। गुणात्मक शिक्षा के प्रावधानों के तहत जहां यूजीसी साइंस विषयों में 15 छात्रों पर एक वहीं सोशल साइंस विषयों में 20 पर एक शिक्षक की अवधारणा रखता है। पर अफसोस, जिले के अंगीभूत कॉलेजों में यह स्थिति बिल्कुल ही नहीं है। यूजीसी का कहना है कि 3,000 छात्रों की क्षमता वाले छात्रो के लिए 15 एकड़ जमीन आवश्यक है। यानि 200 छात्र प्रति एकड़। पर यहां ऐसा एक भी महाविद्यालय नहीं है, जो अपने पास इतनी जमीन रखता हो। स्थिति यह कि 11 कट्ठा भूखंड जमीन में भी कॉलेज कार्यरत है। यानि महिला कॉलेज। एक मात्र महिला महाविद्यालय होने के बावजूद इस कॉलेज में होम साइंस की पीजी की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। रही बात प्राथमिक शिक्षा की तो। सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन की स्थिति भी धीरे-धीरे खराब होती जा रही है। मध्याह्न भोजन योजना की स्थिति तो यहां तक पहुंच गयी है कि मैं सूबे के तीन फिसड्डी जिले में शामिल हो गया। प्राथमिक विद्यालय स्तर पर मैं वर्ष 2010-11 में सिर्फ 31.6 फीसदी बच्चों को ही मध्याह्न भोजन की सुविधा दे पाया। खगड़िया के बाद सूबे का सबसे कम प्रतिशत वाला जिला मैं ही हूं। वैसे डीएम कुल 2518 विद्यालयों में 536095 छात्रों को प्रतिदिन मध्याह्न भोजन योजना से लाभान्वित होने की बात कहते हैं। मेरी धरती पर प्राथमिक व मध्य विद्यालयों की कुल संख्या 2503 है। पर अभी भी 42,685 छात्र स्कूल से बाहर हैं। क्या कहूं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अब मैं लाचार हो चुका हूं। पहले मेरी स्थिति ज्यादा बेहतर थी। जनवरी 11 से सितंबर 11 तक के बीच मेरी धरती के विभिन्न अस्पतालों में 79, 427 मरीज प्रतिदिन पहुंचे। मेरी चिंता से विभागीय आंकड़ा भी कम मेल नहीं खाता। जनवरी 11 से सितंबर 11 के बीच के आंकड़े बताते हैं कि औसतन 7274 मरीज प्रतिदिन ओपीडी में आये। पर मरीजों के बिस्तर का प्रयोग केवल 77 व 11-12 में 84.6 फीसदी हुआ। यानि मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई। पर मुझे सबसे ज्यादा दुख तब हुआ जब मुझे जानकारी मिली कि स्वास्थ्य के लिहाज से मुझे बिहार के सबसे दस अति पिछड़े जिले में शामिल किया गया।

samastipur chini mil ek case study

upload by Ram Balak Roy
साभार मुकेश कुमार
दैनिक जागरण समस्तीपुर
चीनी मिल की आस खत्म, बिक गई पेपर मिल
मिथिलांचल का द्वार कहे जाने वाला  समस्तीपुर . और इस जिले के  किसानो का एकमात्र जीविका का साधन जोरने वाला जितवारपुर चीनी मिल का अब सरंचना मात्र शेष बाख गया है . सरकार के कई महत्वपूर्ण भारतीय प्रशाशनिक सेवा के अधिकारियो का इस मिल को बचने का सपना भी अधुरा रह गया।इसपर एक परताल मुकेश भैया जी ने की है बिस्तृत ............
 भविष्य की रचना उसके अतीत से होती है। खासकर इस जिले की तो हर धड़कन उसके अतीत की ही प्रतिध्वनि है। घटनाएं, प्रवृतियां, फैसले और विचार उसे समृद्ध करते रहते हैं, तो कई बार पीछे भी खींचते हैं। स्थापना दिवस नजदीक होने के कारण हमारा ध्यान तेजी से बदलते निकटतम वर्तमान को दर्ज करने, उसका विश्लेषण करने पर केन्द्रित रहा है। स्थापना की 41 वीं वर्षगांठ पर हमने तय किया कि अपने उस इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए जिसके कारण हम औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में लगातार पिछड़ते चले गए। वैसे तो मेरी पैदाईश 14 नवंबर 1972 को हुई थी। आज की तिथि से मेरे इस उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता है। समय के पहिए के साथ उम्र भी बढ़ गई, साथ ही उम्मीदें भी। क्या बतलाऊं। हमारे कंधे पर करीब 42 लाख 54 हजार 782 की आबादी का बोझ है। सभी अपने-अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। भय, भूख और भ्रष्टाचार मेरे सामने चुनौती है। जब 40 साल के किसी जवान की हंसती खेलती गृहस्थी को देखता हूं तो सहसा ही मेरा मन दुखी हो जाता है। मन में यह सवाल कुरेदने लगता है कि जब चालीस साल में किसी आदमी की गृहस्थी जवान हो सकती है, तो मेरी गृहस्थी क्यों नहीं। पर सोचकर मन मायूस हो जाता है। पूर्व में लगाए गए उद्योग-धंधों की बात करें तो लगता है, मैं पहले ही ठीक था। एक पेपर मिल और चीनी मिल से सैकड़ों कर्मियों के लिए निवाले का जुगाड़ होता था। पर विकसित होने की पहचान ने हमारी ही धरती पर एक -एक कर सभी कारखाने बंद होते चले गए। ऐसा लगा मानों अब इसे किसी की नजर लग गई। जिला मुख्यालय में 1917 से स्थापित चीनी मिल का नामोनिशान मिट गया। क्योंकि इसकी नीलामी हो गई। वह भी महज 28.77 करोड़ रुपए में। अब यह निजी हाथों में चली गई। औद्योगिक क्षेत्र की स्थिति यहां तक आ पहुंची कि विभिन्न इकाईयों के नाम पर आवंटित कुल 48 एकड़ में फैले इस औद्योगिक प्रक्षेत्र में कोई नयी औद्योगिक इकाई नहीं खुल पाई। कुछ बनी भी तो कुछ बीमार भी हो गयी। कुछ ने अपना कारोबार समेट लिया। इस परिसर में कुल 13 औद्योगिक इकाई ही संचालित है। रही बात कृषि क्षेत्र की तो बता दें कि अभी तक सिंचित क्षेत्र में वृद्धि तक नहीं हो पायी है। नावार्ड द्वारा वित्त पोषित बिग विश प्लांट की उपलब्धियां भी कुछ खास नहीं रही। हालांकि यह अप्रैल 2009 में शुरू हुआ था। रही बात स्टेट ट्यूबेल की तो वह बिल्कुल मृतप्राय हो चुका है। 196 स्टेट ट्यूबेल में से 16-17 ही चालू स्थिति में है। बता दें कि कृषि प्रधान इस जिले में 2,62, 390 हेक्टेयर भूखंड है। 3811 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य व्यवहारिक ही नहीं है। वहीं 9140 हेक्टेयर जलसंग्रहण का क्षेत्र है। इसमें 53903 हेक्टेयर गैर कृषि योग्य भूमि है जो कुल क्षेत्र का 20.5 वां हिस्सा आता है। पुराने 258 नलकूपों में से 186 ठप है। उद्भव सिंचाई योजना की 99 इकाईयों में से 92 ठप है। बार्ज योजना के सभी 137 संयत्र बेकार पड़े हुए हैं। इसमें जो चार ठीक हैं, उसकी रही-सही कसर विद्युत आपूर्ति भी खराब कर रही है। नवार्ड फेज 11 के तहत वर्ष भर पूर्व जिले में 128 नए राजकीय नलकूप लगाये गए थे। इसमें विद्युत आपूर्ति के लिए वर्ष 2008 तथा मार्च 2010 में नलकूप विभाग ने 1 करोड़ 28 लाख रूपए बिजली बोर्ड को भी दिया था। इसमें से अबतक रोसड़ा के महज चार नलकूपों को बिजली आपूर्ति की जा सकी। शेषनलकूप बिजली के बगैर बंद पड़े हुए हैं। वहीं पुराने 258 नलकूपों की उलटी गिनती जारी है। वैसे विभागीय रिकार्ड में इसकी संख्या 72 बतायी जा रही है। इसी तरह लघु सिंचाई परियोजना के तहत लगाए गए 99 उद्भव परियोजना के तहत लगाए गए उदभव सिंचाई परियोजना में से सरकारी आंकड़े 7 को सही हालत में बताये जाते हैं। इसी तरह लघु सिंचाई विभाग की सभी 137 बार्ज संयत्र भी बेकार पड़े हुए हैं।
औद्योगिक इतिहास पर नजर
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- स्थापना काल में जिले की कुल आबादी 18 लाख 27 हजार 478 थी उस समय शहर की आबादी 20 से 25 हजार के करीब थी। अब यह संख्या लगभग एक लाख पार कर रही है।
- 14 नवंबर 1972 में जिले का दर्जा मिला। उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय थे। इसके पूर्व दरभंगा जिले के अधीन एक अनुमंडल के रूप में थी इसकी पहचान
- यहां लगभग 300 छोटे बड़े लघु व कुटीर उद्योग स्थापित थे
- दलसिंहसराय में सिगरेट, वारिसनगर में सलाई, पूसारोड में बर्तन, ताजपुर में कांटी व छड़ बनाने की थी फैक्ट्री। शहर में कूट फैक्ट्री, चीनी मिल, पेपर मिल स्थापित था, जो अब बंद हो गए।

Monday 5 November 2012

bihar ke bina desh ka sarwagin bikash sambhaw nahi

राम बालक रॉय

बिहार के बिना देश का समावेशी विकास संभव नही: नीतीश

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में आयोजित अधिकार रैली को संबोधित करते हुए कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जदयू उसी दल को समर्थन देगी, जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा।
उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है बिहार के लोग जाति या वर्ग के मु्द्दे पर नहीं बल्कि विकास के मुद्दे पर एकजुट हुए हैं।
नीतीश ने कहा कि जब भी उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए मुलाकात का समय मांगा, प्रधानमंत्री ने समय नहीं दिया। पटना में अधिकार रैली के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा कि बिहार अपना अधिकार लेकर रहेगा। उनका कहना है कि यह केंद्र की सरकार का कर्तव्य बनता है कि विकास के तमाम पैमानों पर राज्य को राष्ट्रीय औसत के करीब लाए। कुमार ने मांग की कि जितने भी राज्य विकास के पैमाने के राष्ट्रीय औसत से नीचे हैं उन्हें विशेष सहायता दी जानी चाहिए।
नीतीश ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “तकनीकी कारणों से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने की बात की जाती रही है, परंतु तर्क के आधार पर वे इन कारणों को बदलना नहीं चाहते। बिहार पर्वतीय राज्य नहीं है, न ही यह समुद्र से घिरा है, जो खान व प्राकृतिक संसाधन थे, वे झारखंड में चले गए। बिहार के पास कुछ है, तो यहां के मेहनती लोग। अब तक जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है वे बिहार से ज्यादा विकसित हैं। उनका तर्क है कि देश में उन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा पहले मिलना चाहिए जो पिछड़े हुए हैं। केंद्र की इस नीति की आलोचना करते हुए कुमार ने केंद्र की सरकार पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया।”
नीतीश कुमार ने चेताया कि अगर केंद्र सरकार अब भी यदि बिहार के साढ़े 10 करोड़ लोगों की आवाज नहीं सुनती है, तो मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली का आयोजन किया जाएगा और उस मौके पर भी पटना की तरह दिल्ली को भी बिहारियों से पाट दिया जाएगा।
5 नवम्बर 2012

Sunday 4 November 2012

adhikar rally me bole cm nitish kumar

  .अपलोड  राम बालक रॉय
                  04. 10.2012
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को केंद्र सरकार से राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग करते हुए कहा कि वे हक की लड़ाई में कामयाब होंगे। उन्होंने केंद्र पर बिहार की अनदेखी करने का आरोप भी लगाया। वहीं, जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि जब-जब बिहारियों ने करवट ली है तब-तब इतिहास बदला है। गांधी मैदान में आयोजित जनता दल यू की अधिकार रैली को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा कि केंद्र लगातार बिहार की अनदेखी की है। नीतीश ने आरोप लगाया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से राज्य को विशेष दर्जा देने के मुद्दे पर कई बार मिलने का वक्त मांगा था, परंतु उन्हें वक्त नहीं दिया गया। इसके लिए उन्होंने कई बार प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखा, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं दिया गया।उन्होंने कहा कि जिन राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है वहां आर्थिक प्रगति हुई है और हमारे राज्य की स्थिति तो विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों से भी बदतर है। हम बाकी राज्यों से 25 साल पीछे हैं और इस बदतर हालत की जिम्मेदारी किसकी है। उन्होंने कहा कि बिहार की धरती उपजाऊ है और यहां के लोग मेहनती है, परंतु हर साल आने वाली बाढ़ उसे कई साल पीछे धकेल देते है। उन्होंने कहा कि अब बदलाव का वक्त आ गया है। राज्य का युवा वर्ग बेइज्जती नहीं चाहता। उन्होंने मार्च में दिल्ली कूच का आह्वान करते हुए कहा कि बिहार के बिना इतिहास नहीं है और हम अपना हक लेकर ही रहेंगे। इससे पहले शरद यादव ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि बिहार अपने अधिकारों के लिए खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि जब जब बिहार में बदलाव आया है, देश का इतिहास बदल गया है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यवासियों को बिहार के हक की लड़ाई के लिए आगे आना होगा।

Tuesday 23 October 2012

yas chopra ke samastipur ke lekhak sanghthano ne di sardhanjli

मुकेश कुमार
23 अक्टोबर 2012
 समस्तीपुर : प्रगतिशील लेखक संघ अवम जनवादी लेखक संघ की जिला इकाई की ओर से प्रख्यात लेखक निर्देशक, पटकथा लेखक तथा प्रोडयूसर यश चोपड़ा के निधन पर जनवादी लेखक संघ ने शोक प्रगट किया है। इस ओर संघ के शाह जफर इमाम, सुबोध नाथ मिश्र , राम बालक रॉय  विद्या सुमन  आदि ने शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि वे मास्टर आफ रोमांस थे।